लेखनी कहानी -06-Aug-2024
विद्या-पद्य। न अब कोई चाह बची।(कविता) भाव-उदासी।
जो गाती थी गीत कभी, अब भूल चुकी हूँ। मैं गम के झूलों में निरन्तर, झूल चुकी हूँ।
छन-छन छनकती थी, पैरों में कभी पायल। अब तो दर्द के काँटों से, मेरे पैर हैं घायल।
कभी मधुर संगीत, रहता था मन में। अभी मूक तारें, मेरे गगन में।
अब न वो मन रहा, न वो जीवन रहा। खिलते थे जिसमें फूल निरन्तर.., न अब चमन रहा।
न कोई रही हार, न कोई जीत रही। न अब कोई उपहार, न कोई प्रीत रही।
न अब कोई आह बची, न अब कोई राह बची। कुछ पाने की जिंदगी में, न अब कोई चाह बची।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर Priya princess panwar स्वरचित,मौलिक द्वारका मोड़,द्वारका,नई दिल्ली-78
Aliya khan
09-Aug-2024 11:43 AM
Nice
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